कथन मानव में सन्तान के लिंग निर्धारण में स्त्रियों की प्रमुख भूमिका होती है। (UPSC 2000) |
कारण (R) स्त्रियों में दो (X) गुणसूत्र होते हैं। |
कूट: |
A) A और R दोनों सही हैं तथा A की सही व्याख्या R है
B) A और R दोनों सही हैं, परन्तु A की सही व्याख्या R नहीं
C) A सही है, किन्तु R गलत है।
D) A गलत है, किन्तु R सही है।
Correct Answer: D
Solution :
उत्तर - A गलत है, किन्तु R सही है। | |||||||||
व्याख्या - जिन जीवधारियों में लिंग के आधार पर दो प्रकार के प्राणी (नर एवं मादा) होते हैं, उनके भ्रूण (embryo) इन अलग-अलग लिंगों में कैसे विभेदित होते हैं, इसे लिंग-निर्धारण (Sex Determination) कहते हैं। मनुष्य के सन्दर्भ में कहें तो संतान लड़का होगा या लड़की? इन्हें निर्धारित करने वाले कारक लिंग-निर्धारक होते हैं। अलग-अलग जन्तुओं में लिंग-निर्धारण के तरीके भिन्न प्रकार के होते हैं। मनुष्य में सेक्स-क्रोमोसोम के प्रकार लिंग-निर्धारण करते हैं। अर्थात् लैंगिक-जनन में स्पर्म एवं अंडे (Ovum) के मिलने पर भ्रूण में जो सेक्स-क्रोमोसोम आते हैं, उसी से लिंग-निर्धारण होता है। | |||||||||
पुरुषों की कोशिकाओं में 44 ऑटोसोम तथा XY प्रकार के सेक्स-क्रोमोसोम होते हैं। इसी प्रकार स्त्रियों में 44 ऑटोसोम तथा XY प्रकार के सेक्स-क्रोमोसोम होते हैं। लैंगिक जनन - क्रिया में स्त्री के ओवेरी और पुरुष के टेस्टिस में क्रमश: ऊजेनेसिस तथा स्पर्मेटोजेनेसिस की क्रिया फलस्वरूप हैप्लॉइड ओवम तथा स्पर्म बनते हैं। हैप्लॉइड ओवम तथा स्पर्म में क्रोमोसोम की संख्या 23-23 होती है। इसमें ओवम तो एक ही प्रकार के अर्थात् 22+X बनते हैं, किन्तु स्पर्म दो प्रकार के अर्थात् 22+X तथा 22+Y प्रकार से निर्मित हो सकते हैं। निषेचन की क्रिया में ओवम (22+X) का किसी भी प्रकार के स्पर्म (22+X या 22+Y) से मिलन होता है। अत: दो स्थितियां हो सकती हैं - | |||||||||
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इस प्रकार से देखा जाता हैं कि पुरुष का स्पर्म का प्रकार ही मुख्य कारक होता है जो लिंग-निर्धारण में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करता है। |
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