1. मूल संविधान में राज्य आपात के संबंध में राष्ट्रपति के न्यायिक समीक्षा या न्यायिक पूनर्विलोकन का कोई प्रावधान नहीं था। |
2. 44वें संविधान संशोधन, 1978 द्वारा राष्ट्रपति का समाधान न्यायिक पुनर्विलोकन के अधीन रखा गया। उपरोक्त में से कौन-सा/से कथन सत्य है/हैं? |
A) केवल 1
B) केवल 2
C) 1 और 2
D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
Correct Answer: C
Solution :
व्याख्या-मूल संविधान में आपात के सम्बंध में राष्ट्रपति के समाधान की न्यायिक समीक्षा पर कोई प्रावधान नहीं था। 38वें संविधान संशोधन, 1975 में यह प्रावधान कर दिया गया कि, आपात की उद्घोषणा के सम्बंध में राष्ट्रपति का समाधान न्यायिक पुनर्विलोकन का विषय नहीं होगा। 44वें संविधान संशोधन, 1978 द्वारा उस उपबंध को संविधान से हटा दिया गया जो राष्ट्रपति के समाधान को न्यायिक समीक्षा से बाहर रखता था। एस.आर बोम्मई बनाम भारत संघ वाद (1994) राष्ट्रपति द्वारा आपात उद्घोषणा की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस वाद में सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि, यदि राष्ट्रपति की उद्घोषणा पर्याप्त तथ्यों पर आधारित है तो न्यायालय हस्तक्षेप नहीं करेगा किन्तु यदि पर्याप्त आधार नहीं हैं तो न्यायालय उस उद्घोषणा को समाप्त कर सकता है। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि संविधान के अनुच्छेद-356 के प्रयोग के विषय वह केवल दो बातों की जाँच करेगाः1. क्या ऐसी पर्याप्त सामग्री विद्यमान थी, जिसके आधार पर कोई भी तार्किक व्यक्ति इसी निष्कर्ष पर पहुँचता कि अनुच्छेद-356 का प्रयोग किया जाना चाहिए? |
2. क्या राष्ट्रपति का निर्णय तथ्यों से सम्बद्ध है? निर्णय असंगत आधार या असद्भाव के कारण तो नहीं लिया गया है? |
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