A) अनुच्छेद-260
B) अनुच्छेद-262
C) अनुच्छेद-263
D) अनुच्छेद-264
Correct Answer: C
Solution :
व्याख्या-अंतर्राज्यीय परिषद के गठन का अधिकार भारत के राष्ट्रपति को है। इसे अंतर-सरकारी परिषद भी कहा जाता है। यदि राष्ट्रपति को यह प्रतित होता है कि, ऐसे परिषद के गठन से सार्वजनिक हितों की पूर्ति होगी तो वह इसका गठन कर सकता है। संवैधानिक प्रावधानों एवं विभिन्न आयोगों, जैसे-राजमन्नार आयोग, प्रशासनिक सुधार आयोग, सरकारिया आयोग की अनुशंसा के फलस्वरूप 18 मई, 1990 को अंतर्राज्यीय परिषद का गठन किया गया। प्रधानमंत्री, अंतर्राज्यीय परिषद का पदेन अध्यक्ष होता है (प्रधानमंत्री की अनुपस्थिति में अंतर्राज्यीय परिषद की अध्यक्षता उसके द्वारा नियुक्त कैबिनेट स्तर के मंत्री द्वारा की जाती है) तथा परिषद में प्रधानमंत्री एवं उसके द्वारा मनोनीत 6 कैबिनेट मंत्रियों के अतिरिक्त राज्यों और संघराज्य क्षेत्रों के मुख्य मंत्री व प्रशासक इस परिषद से पदेन सदस्य होते है। अंतर्राज्यीय परिषद के कार्यः1. अंतर्राज्यीय परिषद का प्रमुख कार्य राज्यों के बीच उत्पन्न विवादों की जाँच करना और उन पर सुझाव देना है। |
2. अंतर्राज्यीय परिषद पर विभिन्न राज्यों के मध्य अथवा केन्द्र एवं एक से अधिक राज्यों के मध्य सामान्य हितो से संबंधित विषयों की जांच करने और उन पर सलाह देने का दायित्व भी है। |
3. अंतर्राज्यीय विषयों से संबंधित नितियों और कार्यवाहियों के बेहतर समन्वय के लिये यह परिषद अनुशंसाएँ भी कर सकती है। |
4. अंतर्राज्यीय परिषद का कार्य कानूनी तथा गैर-कानूनी दोनों प्रकार के मामलों से संबंधित हो सकता है, किन्तु इसकी प्रकृति केवल सलाहकारी होगी। |
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