A) लावण्य-योजना
B) वर्णिका-भंग
C) सादृश्य
D) भाव
Correct Answer: B
Solution :
उत्तर [b] वर्णिका-भंग |
व्याख्या - चित्र में अनेक रंगों की मिली-जुली भंगिमा को वर्णिका-भंग कहते हैं। वर्णिका-भंग के द्वारा ही चित्रकार को इस बात का ज्ञान होता है कि किस स्थान पर किस रंग को भरना चाहिए। |
टिप्पणी - |
सादृश्य - किसी मूल वस्तु की नकल अथवा उसकी दूसरी आकृति बनाना अथवा उसकी समानता का नाम ही सादृश्य है। |
भाव - भाव चित्र की अनुभूति से उभरते हैं। स्वभाव, मनोभाव और उसकी व्यंग्यात्मक प्रक्रिया का भाव ही हमारे शरीर में अनेक स्थितियां पैदा करता है। भाव- व्यंजन के दो रूप हैं- प्रकट और अप्रकट। |
लावण्य-योजना - भाव जिस प्रकार मनुष्य के भीतरी सौंदर्य का बोधक है उसी प्रकार लावण्य चित्र के बाहरी सौंदर्य का बोधक है। लावण्य-योजना के द्वारा ही चित्र को नयनाभिराम बनाया जा सकता है। |
प्रमाण - प्रमाण के द्वारा ही मूल वस्तु की यथार्थता का ज्ञान उसमें भरा जा सकता है। देवी-देवताओं और मनुष्यों के चित्रं में क्या अंतर होना चाहिए- ये सभी बातें प्रमाण द्वारा ही निर्धारित की जा सकती हैं। |
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