बनारस ठुमरी के संदर्भ में निम्न कथनों पर विचार करें - |
1. बनारस की ठुमरी पण्डित जगदीप मिश्र जी से शुरू हुई। |
2. बनारसी बोल की ठुमरी को मंद गति के साथ गाया जाता है। उपरोक्त में से सत्य कथनों का चुनाव करें |
A) केवल 1
B) केवल 2
C) 1 और 2
D) न तो 1 न ही 2
Correct Answer: C
Solution :
उत्तर - 1 और 2 |
व्याख्या - बनारस घराना गायन और वादन दोनों कलाओं के लिए प्रसिद्ध रहा है। इस घराने के गायक ख्याल गायकी के लिए जाने जाते हैं। इसके साथ ही बनारस घराने के तबला वादकों की भी अपनी एक स्वतंत्र शैली रही है। सारंगी वादकों के लिए भी यह घराना काफी प्रसिद्ध रहा है। इस घराने की गायन एवं वादन शैली पर उत्तर भारत के लोक गायन का गहरा प्रभाव है। उसका आभास बनारस के लोक संगीत में दिखता है। ठुमरी मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश की ही देन है। लखनऊ में इसकी उत्पत्ति हुई थी और बनारस में इसका विकास हुआ। बनारस की ठुमरी पण्डित जगदीप मिश्र जी से शुरू हुई। बनारसी ठुमरी के दो प्रकार हैं - |
1. धनाक्षरी अर्थात शायरी ठुमरी - यह तीव्र गति में गाई जाती है और द्रुत तानों के द्वारा प्रसारित की जाती है। ? |
2. बोल की ठुमरी - इसे मंद गति के साथ गाया जाता है और एक-एक शब्द को बोलते हैं। बनारस अंग की ठुमरी में चौनदारी है। यहां की बोल-चाल और कहने का अलग किस्म का होता है। यहां की ठुमरी में ठहराव और अदायगी का अपना एक अलग रंग है। इसमें खूबसूरती अपेक्षाकृत अधिक रहती है। |
विशेष - ग्वालियर के राजा मानसिहं तोमर. (तंवर) ठुमरी के आदि प्रवर्तक थे। उन्हें के नाम पर इसका नामतनवरी पड़ा था, जो बाद में बिगड़कर ठुमरी हो गया। ठुमरी के इतिहास में मौजुद्दीन खान, ग्वालियर के भैयासाहब गणपतराव और नवाब वाजिद अलीशाह का नाम भी महत्त्वपूर्ण है। बनारस की ठुमरी पंडित जगदीप मिश्र जी से शुरू हुई। पंडित जगदीप मिश्र, भैया गणपतराव एवं मौजुद्दीन खान के समय से विलंबित लय की बोल बनाव ठुमरी के गाने का प्रचलन बढ़ा तथा बनारस में इसका अत्यधिक प्रचार-प्रसार हुआ, तत्पश्चात यही ठुमरी पूरब की बोलियां तथा लोकगीतों के प्रभाव से और अधिक भाव प्रधान हो गई, और अंत में बनारसी ठुमरी के नाम से रूढ़ हो गई। |
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