A) तृष्णारूपी अग्नि का शमन
B) स्वयं की पूर्णत: अस्तित्वहीनता
C) परमानंद एवं विश्राम की स्थिति
D) धारणातीत मानसिक अवस्था
Correct Answer: A
Solution :
उत्तर- तृष्णारूपी अग्नि का शमन |
व्याख्या - निर्वाण बुद्धत्व की वह स्थिति है जिसमे व्यक्ति सांसारिक मोह-बंधनो से मुक्त होकर अनासक्त, निर्विकार और निर्लिप्त भाव से होशपूर्ण जीवन जीता है। बुद्ध ने निर्वाण को मन की उस परम शांति के रूप में वर्णित किया है, जो तृष्णा, क्रोध और दूसरी विषादकारी मन:स्थितियों से रहित है। यह शांति तभी प्राप्त होती है जब सभी वर्तमान इच्छाओं के कारण समाप्त हो जाएं और भविष्य में पैदा हो सकने वाली इच्छाओं का जड़ से नाश हो जाए। निर्वाण में तृष्णा और द्वेष के कारण जड़ से समाप्त हो जाते हैं, जिसे मनुष्य सभी प्रकार के कष्टों या संसार में पुनर्जन्म के चक्र से छूट जाता है। |
विशेष - हिरियन्ना ने निर्वाण की व्याख्या करते हुए लिखा है कि यह वास्तव में किसी मरणोत्तर अवस्था का सूचक नहीं है। यह तो उस अवस्था का सूचक है जो व्यक्ति के जीवित रहते हुए पूर्णता की प्राप्ति के बाद आती है।यह मन की एक विशेष वृत्ति का सूचक है और वह जो इस वृत्ति को प्राप्त कर चुका है, अहत् कहलाता है। |
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