19वीं सदी के अंत से भारत में सांप्रदायिकता के विकास के प्रमुख कारण थे |
1. ब्रिटिशों की फूट डालो और शासन करो की नीति। |
2. सैयद अहमद खान द्वारा रूढ़िवादी विचारों का प्रचार-प्रसार करना। |
3. मुसलमानों का शिक्षाए व्यापार और उद्योग में पिछड़ापन। |
A) केवल 1 और 2
B) केवल 2 और 3
C) केवल 1
D) 1, 2 और 3
Correct Answer: D
Solution :
उत्तर - (d)1, 2 और 3 |
व्याख्या - ब्रिटिश राजनेता भारत में अपने साम्राज्य की सुरक्षा तथा देश में एकजुट राष्ट्रीय भावना के विकास को रोकने के लिये फुट डालो और शासन करो की नीति पर कार्य करने लगे। जनता को धार्मिक आधारों पर बांटने का अर्थात् भारत की राजनीति में सांप्रदायिक और अलगाववादी प्रवृत्तियों को प्रोत्साहित करने का फैसला किया। संयुक्त प्रांत और बिहार में हिंदू और मुसलमान हमेशा से शांतिपूर्वक रहते आए थे। वहां उन्होंने राजभाषा के पद से उर्दू को हटाकर उसके स्थान पर हिंदी को दिये जाने के आंदोलन को खुलकर प्रोत्साहन दिया। धार्मिक अलगाववाद की प्रवृत्ति के विकास में सैयद अहमद खान की महत्वपूर्ण भूमिका रही। सैयद अहमद खान अपने जीवन के अंतिम दिनों में रूढ़िवादी विचारधारा का समर्थन करने लगे थे। उनके द्वारा घोषणा की गई की हिंदुओं और मुसलमानों के राजनैतिक हित समान न होकर एकदम अलग-अलग है और इस प्रकार उन्होंने मुस्लिम सांप्रदायिकता की नींव डाली। |
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