सतत आर्थिक विकास एवं संवृद्धि
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सतत आर्थिक विकास एवं संवृद्धि
विश्लेषणात्मक अवधारणा
पारंपरिक रूप से भारत की आर्थिक विकास एवं संवृद्धि को विकसित करने का पूर्ण उत्तरदायित्व सर संरचना में सरकार का निवेश अपर्याप्त था। आर्थिक विकास एवं संवृद्धि के सत्त विकास के लिए वर्तमान समय मे निजी क्षेत्र ने स्वयं एवं सरकार के साथ संयुक्त भागीदारी कर आर्थिक संरचना में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभानी शुरू कर दी है। हमारे देश में बहुसंख्य आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करती है। विश्व में अत्याधिक तकनीकी उन्नति के बावजूद ग्रामीण महिलाएँ अपनी ऊर्जा की आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु फसल का बचा, गोबर और जलाऊ लकड़ी जैसे जैव ईंधन का का आज भी आर्थिक विकास एवं संवृद्धि में अपना योगदान दे रहे हैं। वर्ष 1991 में तत्कालीन वित्त मंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने उदारीकरण नीति को लागू किया जिससे सत्त आर्थिक विकास एवं संवृद्धि में उन्नति आई है।
आर्थिक विकास एवं संवृद्धि
विकास वह अवस्था होती है जिसमें समय को आधार मानकर एक तुलनात्मक परीक्षण किया जाये एवं स्थिति पहले की अपेक्षा बेहतर साबित हो। -
§ आर्थिक विकास
· आर्थिक विकास किसी अर्थव्यवस्था में होने वाला गुणात्मक परिवर्तन होता है, जो सामाजिक मूल्यों से भी प्रभावित होता है।
· जब किसी क्षेत्र-विशेष में अथवा देश में व्यक्तियों के आर्थिक स्तर में वृद्धि होती है तो उसे आर्थिक विकास कहा जाता है। साथ-ही-साथ इसके अंतर्गत बने वे सभी विधान जो जनसमुदाय के आर्थिक विकास का कारण बनते हैं, इसमें सम्मिलित किये जाते हैं।
· आर्थिक विकास का दृष्टिकोण अधिक व्यापक होता है। आर्थिक विकास के अंतर्गत सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक आदि स्तरों का गुणात्मक एवं परिमाणात्मक परिवर्तन सम्मिलित किये जाते हैं।
· आर्थिक विकास यदि किसी व्यक्ति-विशेष के सापेक्ष देखा जाये तो उस व्यक्ति का आर्थिक, राजनीतिक, शिक्षा, जीवन प्रत्याशा, पोषण का स्तर, स्वास्थ्य सेवायें पति व्यक्ति उपभोग हुई वस्तुयें आदि सभी चरों का सम्मिलित रूप उस व्यक्ति का आर्थिक विकास माना जाएगा।
· भारतीय मूल के नोबेल पुरस्कार विजेता अमर्त्य सेन ने आर्थिक विकास का अर्थ आधिकारित तथा क्षमता का विस्तार माना है।
· पाकिस्तान के प्रसिद्ध अर्थशास्त्री महबूब उल-हक के अनुसार- आर्थिक विकास गरीबी के विरुद्ध लड़ाई है।
§ आर्थिक संवृद्धि
· आर्थिक संवृद्धि किसी अर्थव्यवस्था में होने वाला मात्रात्मक परिवर्तन होता है।
· आर्थिक संवृद्धि नियोजित प्रक्रियाओं का परिणाम होता है।
· आर्थिक संवृद्धि का दृष्टिकोण अपेक्षाकृत संकुचित होता है।
· इसके अंतर्गत केवल उत्पादन में वृद्धि आती है। इसके अंतर्गत केवल वे ही चर आते हैं जिनका परिमाणात्मक माप संभव होती है।
· इसका संबंध वस्तु एवं सेवा की वास्तविक वृद्धि होता है और साथ ही यह सकल घरेलू उत्पाद, राष्ट्रीय आय और प्रति व्यक्ति आय की वृद्धि से भी संबंधित है।
§ आर्थिक संवृद्धि दर
आर्थिक विकास का माप
1. मानव विकास सूचकांक
2. लैंगिक विकास सूचकांक
3. बहुआयामी गरीबी सूचकांक
4. वैश्विक खुशहाली सूचकांक
5. आधारभूत आवश्यकता प्रत्यागम
1. मानव विकास सूचकांक-
इसका सर्वप्रथम प्रयोग वर्ष 1990 में यूनाइटेड नेशन्स डेवलपमेंट प्रोगाम (UNDP) से संबंधित अर्थशास्त्री महबूब उल हक तथा अमर्त्य सेन ने किया।
· मानव विकास सूचकांक के अंतर्गत निर्धारित मूल्य होते हैं जो 0 से 1 के मध्य होते हैं।
· 0 से बढ़ता हुआ क्रम विकास की बढ़ती अच्छी स्थिति को दर्शाता है अर्थात 1 इसका उच्चतम मान होता है।
· वर्तमान में विश्व के 189 देश इसके अंतर्गत आते हैं, जिसमें भारत का स्थान 129वाँ है (2019 के अनुसार) प्रथम स्थान पर स्वीडन द्वितीय पर स्विट्जरलैण्ड एवं तृतीय स्थान नार्वे का है।
मानव विकास सूचकांक की श्रेणियाँ
1. अति उच्चतम मानव विकास- 0.800 और उससे अधिक
2. उच्चतम मानव विकास0.700 से 0.799 तक
3. मध्यम मानव विकास- 0.550 से 0.699
4. निम्न विकास- 0.550 से कम
इसी आधार पर वर्तमान में 189 देशों को इस सूची में स्थान दिए जाते हैं।
मानव विकास सूचकांक एक सांख्यिकीय सूचकांक है जिसमें जीवन प्रत्याशा शिक्षा स्वास्थ्य और आय सूचकांकों को शामिल किया जाता है।
मानव विकास रिपोर्ट-2019
रैंकिंग |
देश |
1. |
नार्वे |
2. |
स्विट्जरलैण्ड |
3. |
ऑस्ट्रेलिया |
129. |
भारत (2018-130वाँ स्थान) |
मानव विकास सूचकांक के तीन आधारभूत आयाम हैं
· ज्ञान
· जन्म के समय जीवन प्रत्याशा
· क्रय शक्तिं समायोजित प्रति व्यक्ति आय
2. लैंगिक विकास सूचकांक
लैंगिक विकास सूचकों को 1995 में (UNDP) द्वारा शुरुआत की गई थी।
· यह स्त्रियों एवं पुरुषों के मध्य मानव विकास की भिन्नता पता लगाता है।
3. बहुआयामी गरीबी सूचकांक- (MPI)
· यह सूचकांक संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम और ऑक्सफोर्ड गरीबी एवं मानव विकास पहल द्वारा सन् 2010 में विकसित किया गया है।
· MPI के तहत ऐसे लोग आते हैं जो कई प्रकार के अभावों से ग्रस्त हैं।
· बहुआयामी गरीबी के निर्धारण में केवल आय ही एकमात्र संकेतक न होकर खराब स्वास्थ्य, काम की खराब गुणवत्ताय आवश्यक शिक्षा का अभाव भी इसके सूचक होते हैं।
· विश्व में कुल 1.3 बिलियन लोग बहुआयामी गरीब हैं।
· वैश्विक बहुआयामी गरीबी सूचकांक 2019 के अनुसार भारत ने वर्ष 2006 से वर्ष 2016 के बीच 271 मिलियन लोगों को गरीबी से बाहर निकाला है।
· भारत का झारखंड राज्य बहुआयामी गरीबी को तेजी से हटाने वाला राज्य है।
· वैश्विक खुशहाली सूचकांक- किसी देश में खुशहाली का स्तर मापने के लिए सन् 2012 में सस्टेनेबल डेवलपमेंट सॉल्यूशन नेटवर्क ने विश्व खुशहाली रिपोर्ट का प्रकाशन शुरू किया।
देश की स्थिति जांचने के लिए निम्न 6 कारकों का उपयोग किया जाता है।
1. प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद
2. सामाजिक सहयोग/सुरक्षा
3. स्वास्थ्य जीवन प्रत्याशा
4. निजी स्वतंत्रता
5. उदारता
6. भ्रष्टाचार पर आम धारणा (समाप्ति)
नोटः सामाजिक सुरक्षा, आय एवं स्वास्थ्य जीवन प्रत्याशा इन तीनों में दिखने वाला अंतर मुख्यतयाः किसी देश का खुशहाली सूचकांक का स्तर तय करता है।
· वर्ष 2019 में दुनिया के 155 देशों की खुशहाली के स्तर का सर्वेक्षण किया गया।
· 2018 की तुलना में भारत 7 स्थान नीचे खिसककर अब 140वें स्थान पर आ गया, जबकि पिछले साल 133वें स्थान पर था।
· फिनलैण्ड पहले स्थान पर है।
· सबसे आखिरी स्थान पर दक्षिणी सूडान रहा।
5. आधारभूत आवश्यकता प्रत्यागम- इसका प्रतिपादन विश्व बैंक द्वारा किया गया था।
6. जीवन की भौतिक गुणवत्ता निर्देशांक प्रत्यागम ओवरसीज डेवलपमेंट काउंसिल के कहने पर मोरिस डेविड ने इसे प्रतिपादित किया था। इसमें तीन आंकड़ों की तुलना की शिशु मृत्युदर, वयस्क साक्षरता दर एवं 1 वर्ष आयु की जीवन प्रत्याशा के औसत मान जीवन की भौतिक गुणवत्ता निर्देशांक प्रत्यागम का अधिकतम मूल्य 100 तथा न्यूतनम मूल्य 1 होगा।
100 की ओर बढ़ना अच्छी स्थिति का तथा 1 की ओर बढ़ना खराब स्थिति का परिचालक होता है।
PQLI = [1/3(LEI+BLI+IMI)]
PQLI = Physical Quality of Life Index (जीवन की भौतिक गुणवत्ता निर्देशांक)
LEI = जीवन प्रत्याशा सूचकांक
BLI = मौलिक साक्षरता सूचकांक
IMLc= शिशु मृत्यु सूचकांक
7. लैंगिक असमानता सूचकांक Gll (Gender Inequality Inder) राष्ट्र विकास के द्वारा सन् 2010 में मानव विकास रिपोर्ट की 20वीं वर्षगांठ पर प्रकाशित किया गया।
लैंगिक असमानता सूचकांक एक संयुक्त मापक है जो लिंग असमानता की वजह से की जाने उपलब्धियों की हानि को दर्शाता है।
सूचकांक में परिकलन के लिए तीन आयामों का प्रयोग किया जाता है।
· महिलाओं का प्रजनन स्वास्थ्य (मातृ मृत्यु दर किशोरियों में प्रजनन दर)
· महिलाओं का सशक्तिकरण
· आर्थिक स्थिति
8. क्रय शक्ति समता सूचकांक- (Purchansing Power) क्रय शक्ति समता सूचकांक तकनीकी प्रगति को दर्शाता है।
इसका सबसे पहले प्रयोग 1993 ई. में अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ने किया था।
वर्तमान समय में विश्व बैंक इसी विधि का प्रयोग विभिन्न देशों के रहन-सहन के स्तर की तुलना में कर रहा है। यह किसी अर्थव्यवस्था की अंतर्राष्ट्रीय क्रय शक्ति का आकलन करने वाली विधि है, इसे अमेरिकी डॉलर से प्रदर्शित किया जाता है। इसके अंतर्गत व्यापारिक तथा गैर-व्यापारिक दोनों प्रकार की वस्तुओं को शामिल किया जाता है।
नोटः अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार क्रय शक्ति समता पर आधारित प्रति व्यक्ति आय की दृष्टि से भारत का विश्व में 126वाँ स्थान है।
§ क्रय शक्ति समता की विशेषताएँ
· विनिमय दर का निर्धारण
· दीर्घ कालीन प्रवृत्ति का द्योतक
· विनिमय दरों में परिवर्तन
§ आर्थिक विकास दर
सकल घरेलू उत्पाद GDP में हो रहे परिवर्तन की दर को आर्थिक विकास दर कहा जाता है।
भारत में आर्थिक विकास के लिए स्वतंत्रता के बाद समाजवादी आर्थिक नीतियों को अपनाया गया।
· तीसरी पंचवर्षीय योजना में आर्थिक विकास दर सबसे कम तथा ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना सबसे अधिक रही।
· आर्थिक विकास के दो पक्ष होते हैं
· निबल राष्ट्रीय उत्पाद में वृद्धि
· प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि
आर्थिक संवृद्धि एवं आर्थिक विकास को प्रभावित करने वाले कारक-
· प्राकृतिक संसाधन- प्राकृतिक संसाधन अर्थव्यवस्था का एक महत्वपूर्ण कारक होता है।
आर्थिक संवृद्धि के लिए प्राकृतिक संसाधनों की प्रचुरता एवं गुणवत्ता अनिवार्य है।
· पूंजी- पूंजी निर्माण से ही आर्थिक विकास का रास्ता साफ होता है। किसी व्यक्ति या समुदाय की प्लाट भूमि तथा मशीनों के निवेश से पूंजी निर्माण होता है, जिसका पुनः निवेश राष्ट्र के उत्पादन क्षमता में वृद्धि लाता हैं।
· सेवा क्षेत्र की बढ़ती भूमिका- सेवा क्षेत्र में बढ़ोत्तरी विकास को दर्शाता है।
सेवा क्षेत्र में रोजगार के नए-नए अवसर का भी सृजन होता है।
· तकनीकी उन्नति- तकनीकी उन्नति आर्थिक विकास में अहम भूमिका निभाता है। अच्छी तकनीक कम संसाधनों से अधिक उत्पादन तथा कम संसाधनों में पर्याप्त उत्पादन संभव बनाता है।
· मानव संसाधन- जनसंख्या आर्थिक विकास का वह कारक है, जो जितना सशक्त एवं क्षमतायुक्त होगा, विकास की गति भी तेज करेगा। मानव शक्ति का उचित उपयोग आश्रित जनसंख्या के लिए कल्याणकारी होती
· विदेशी व्यापार की स्थिति एवं नीतियाँ- विदेशी व्यापार नीति देश की अर्थव्यवस्था के विकास पर सकारात्मक प्रभाव डालती है। इसीलिए विदेशी व्यापार नीति, विदेशी निवेश, विदेशी मुद्रा भण्डार एवं सकारात्मक भुगतान संतुलन आर्थिक विकास के लिए आवश्यक है।
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