A) न्याय दर्शन में मोक्ष को अपवर्ग भी कहा गया है।
B) न्याय दर्शन के अनुसार कर्मफल परलोक में मिलता है।
C) न्याय दर्शन के अनुसार स्मृति और अनुभव ज्ञान के दो प्रकार हैं।
D) इनमें से कोई नहीं
Correct Answer: D
Solution :
उत्तर - इनमें से कोई नहीं |
व्याख्या - न्याय दर्शन के अनुसार उपरोक्त सभी कथन सत्य हैं। न्याय दर्शन में मोक्ष को अपवर्ग भी कहा जाता है। यह ऐसी अवस्था है जहां दु:ख पूर्णतया समाप्त हो जाता है। इस दर्शन के अनुसार व्यक्ति को अदृष्ट अर्थात परलोक में उसके द्वारा किये कर्मों का फल मिलता है। न्याय दर्शन में स्पष्ठ किया गया है कि ज्ञान दो प्रकार का होता है स्मृति और अनुभव। |
स्मृति - संस्कार मात्र से उत्पन्न होने वाला ज्ञान स्मृति कहलाता है। अनुभूत पदार्थ के नष्ट हो जाने पर भी उससे उत्पन्न भावनारूप संस्कार अनुभवकर्ता के हृदय में विद्यमान रहता है। |
अनुभव - स्मृति के अतिरिक्त सभी ज्ञान अनुभव माने जाते है, अर्थात वे ज्ञान जो नए है और पुराने ज्ञान की आवृत्ति मात्रा नहीं है वही ज्ञान अनुभव है। अनुभव सभी मानसिक प्रक्रियाओं का अंतिम मूल है और सारी मानसिक प्रक्रियायें अनुभव से ही बनती है। |
विशेष - |
1. इस दर्शन के अनुसार अनुभव दो प्रकार के है प्रमा मतलब यथार्थ और अप्रमा मतलब अयथार्थ। यथार्थ ज्ञान को प्रमा कहते है तथा अयथार्थ ज्ञान को अप्रमा कहते है। |
2. अन्य भारतीय दर्शनों की तरह न्याय का चरम उद्देश्य मोक्ष को अपनाना है। मोक्ष की अनुभूति तत्वज्ञान अर्थात वस्तुओं के वास्तविक स्वरूप जानने से हो सकती हैं। इसी उद्देश्य से न्याय दर्शन में 16 पदार्थों की व्याख्या की गई है। |
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