A) शून्य कोटि नियम
B) प्रथम नियम
C) द्वितीय नियम
D) इनमें से कोई नही
Correct Answer: A
Solution :
उत्तर - शून्य कोटि नियम |
व्याख्या - ऊष्मा गतिकी का शून्य कोटि नियम |
यदि दो निकाय किसी अन्य निकाय के साथ अलग -अलग तापीय (ऊष्मीय) संतुलन में हो तो वे परस्पर भी तापीय संतुलन में होंगे। इसका प्रतिपादन 1931 में आर.एच. फाउलर ने किया। तापीय संतुलन से तात्पर्य है की इसके सभी भागों का ताप समान हो तथा यह ताप परिवेश (surrounding) के ताप के समान हो। |
ऊष्मा गतिकी का प्रथम नियम (First Law of Thermodynamics) |
किसी प्रक्रम के दौरान ऊष्मा गतिकी निकाय द्वारा अवशोषित की गयी ऊष्मा Q इसी प्रक्रम में निकाय द्वारा किये गये कार्य W तथा निकाय की आंतरिक ऊर्जा में होने वाली वृद्धि \[\Delta U\] के योग के बराबर होती है। |
\[Q\text{ }=\text{ }\Delta U+W\] |
ऊष्मा गतिकी निकाय में होने वाले किसी भी प्रक्रम में ऊर्जा संरक्षित रहती है। इस नियम को ऊर्जा संरक्षण का नियम भी कहते है। |
ऊष्माधारिता (Thermal Capacity) - किसी पिंड के कुल द्रव्यमान का ताप \[1{}^\circ C\] बढ़ाने के लिए आवश्यक ऊष्मा की मात्रा को उस पिंड की ऊष्मा धारिता कहा जाता है। |
ताप वृद्धि ऊष्मा धारिता मात्रक- जूल/\[~{}^\circ C\] या कैलोरी प्रति सेल्सियस होता है। |
ऊष्मागतिकी का दूसरा नियम (Second Law of Thermodynamics)- ऊष्मागतिकी का दूसरा नियम ऊष्मा के प्रवाहित होने की दिशा को व्यक्त करता है। इस नियम के दो कथन है जो ऊष्मा इंजनो तथा प्रतिशकों की कार्यविधियों की विवेचना करता है |
प्रथम- केल्विन- प्लांक कथन के अनुसार ऊष्मा का संपूर्ण रूप से यांत्रिक ऊर्जा में परिवर्तन असंभव है। |
द्वितीय- क्लासियस का कथन के अनुसार ऊष्मा कम ताप की वस्तु से अधिक ताप की वस्तु की ओर प्रवाहित नहीं हो सकती तब तक की ऊर्जा के लिए किसी बाह्य स्रोत का उपयोग न किया जाए। |
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