खनिज
विश्लेषणात्मक अवधारणा
किसी भी देश की आर्थिक, सामाजिक उन्नति उसके अपने प्राकृतिक संसाधनों के युक्तिसंगत उपयोग करने की क्षमता पर निर्भर करता हैं। इसका संबंध हमारे वर्तमान एवं भविष्य के कल्याण से है। चूंकि खनिज ऐसे क्षयशील संसाधन हैं, जिन्हें दोबारा नवीनीकृत नहीं किया जा सकता। अत: इनके संरक्षण की आवश्यकता बहुत ज्यादा है। इस पाठ के अध्ययन से हम पृथ्वी पर पाए जाने वाले विशिष्ट खनिज पदार्थ, खनिज-तेल एवं ऊर्जा के अन्य संसाधनों के भौगोलिक वितरण, इन संसाधनों के साथ संयुक्त समस्याएं एवं इनके संरक्षण की आवश्यकताओं से अवगत होंगे।
खनिज
- ‘भू-वैज्ञानिकों की –ष्टि में वह चट्टानी पदार्थ जिसका रासायनिक संगठन व परमाणु संरचना सुरक्षित है तथा वह प्रकृति में कार्बनिक तथा अकार्बनिक क्रियाओं के फलस्वरूप निर्मित हो खनिज कहलाता है।
कोयला
- ‘वनस्पति का परिवर्तित स्परूप ही कोयला है। जब पेड़ पौधे प्राकृतिक क्रियाओं के कारण जमीन के अंदर दब गये तो ऊपर के दाब एवं अंदर के ताप से यह कोयले में परिवर्तित हो गये।
- भारत का 98% कोयला गोंडवाना युगीन है, जिसकी आयु लगभ 25 करोड़ वर्ष है एवं शेष 2% कोयला तृतीयक या टर्शियरी युगीन कोयला है, जिसकी आयु5 से 6 करोड़ वर्ष के मध्य निर्धारित की गर्इ है।
- कार्बन की मात्रा के आधार पर कोयले को निम्न चार प्रकारों में वर्गीकृत किया गया है-
- एन्थ्रेसाइट 2. बिटुमिनस
- लिग्नाइट 4. पीट
- एन्थेसाइट
- यह सर्वोत्तम किस्म का कोयला है।
- इसमे कार्बन की मात्रा 80-95% के मध्य होती है।
- यह मुख्य रूप से जम्मू एवं कश्मीर के ‘रियांसी’ जिले में पाया जाता है।
- बिटुमिनस
- यह मध्यम किस्म का कोयला है।
- इसमें कार्बन की मात्रा 55-80% के मध्य होती है।
- भारत का अधिकांश कोयला इसी प्रकार का है।
- लिग्नाइट
- यह निम्न श्रेणी का कोयला है।
- इसमें कार्बन की मात्रा 40-55% तक होती है।
- इसे भूरा कोयला भी कहते हैं एवं जलते समय यह अधिक धुंआ देता है।
- पीट
- यह वनस्पति का ही एक रूप है।
- इसमें कार्बन की मात्रा 40% से कम होता है।
- यह कोयला बनने की प्रक्रिया में मध्य अवस्था में है।
भारत के कोयला क्षेत्र
दामोदर घाटी क्षेत्र
- संचित भंडार की दृष्टि से यह भारत का सबसे बड़ा कोयला क्षेत्र हैं
- इसके अंतर्गत झारखंड व बंगाल के कोयला क्षेत्र आते हैं।
- झारखंड-झारिया, बोकारो, गिरीडीह, हजारीबाग, धनबाद, सिंहभूम
- बंगाल -रानीगंज (भारत का सबसे बड़ा कोयला क्षेत्र संचित - भंडार की दृष्टि से)
सोन घाटी कोयला क्षेत्र
- इस कोयला क्षेत्र के अंतर्गत मध्यप्रदेश के सोहागपुर (शहडोल), सीधी, उपरिया, सिंगरौली, तातापानी, रामकेला आदि क्षेत्र सम्मिलित है।
महानदी घाटी कोयला क्षेत्र
- इसके अंतर्गत छत्तीसगढ़ व उड़ीसा के क्षेत्र सम्मिलित है।
- छत्तीसगढ़ -कोरबा, झिलमिली, चिरमिरी, विश्रामपुर
- उड़ीसा - संबलपुर, तालचेर, मयूरगंज
गोदावरी नदी घाटी कोयला क्षेत्र
- यह मुख्य रूप से तेलंगाना में स्थित है। इसके अंतर्गत करीमनगर, सिंगरनी, खम्मम, वारांगल प्रमुख कोयला क्षेत्र है।
वर्धा घाटी कोयला क्षेत्र
- इसके अंतर्गत महाराष्ट्र के चंद्रपुर, यवतमाल व नागपुर के कोयला क्षेत्र सम्मिलित हैं।
लौह अयस्क
- वर्तमान मानव सभ्यता की धुरी कहा जाने वाला. लौह अयस्क कुडप्पा एवं धारवाड़ युगीन आग्नेय-चट्टानों में मिलता है।
- धातु की मात्रा के आधार पर इसे 4 भागों में विभाजित किया गया है -
- मैग्नेटाइड- यह सर्वोत्तम किस्म का लौह अयस्क है। इसमें धातु की मात्रा 72% तक होती हैं।
- हेमेटाइड - यह लाल-भूरे रंग का अयस्क है जिसमें धातु की मात्रा 60-70% तक होती है।
- लिमोनाइट - यह प्राय: पीले रंग का होता है इसमें धातु की मात्रा 40-60% तक होती है।
- सिडेराइट - लौह एवं कार्बन मिश्रित होता है। भूरे रंग का एवं इसमें धातु की मात्रा 40% से कम होती है।
खनिज तेल
- खनिज तेल एवं प्राकृतिक गैस टर्शियरी युग से प्राप्त किया जाता है।
- सबसे ऊपर प्राकृतिक गैस तथा उसके नीचे खनिज तेल तथा सबसे नीचे जल पाया जाता है।
भारत के प्रमुख तेल क्षेत्र
- असम तेल क्षेत्र
- यह भारत का सबसे पुराना तेल उत्पादक क्षेत्र है जो ब्रह्मपुत्र नदी घाटी में विस्तृत है।
- इसके अंतर्गत निम्न तेल क्षेत्र आते हैं- डिग्बोर्इ, नहर कटिया, माकुम, मोरान - हुगरीजन क्षेत्र, रूद्रसागर- लकवा क्षेत्र, सूरमा धारी क्षेत्र आदि।
- गुजरात तेल क्षेत्र
- इस तेल क्षेत्र के अंतर्गत अंकलेश्वर, लूनेज, कलोल, आलियाबेट, खादियाबेट, सानंद, कोसांबा आदि क्षेत्र आते हैं।
- अंकलेश्वर गुजरात का सबसे पुराना व बड़ा तेल क्षेत्र है।
- पश्चिमी तटीय क्षेत्र
इसके अंतर्गत बाम्बे हार्इ, बसीन, नीलम एवं पन्ना तेल क्षेत्र शामिल हैं।
- पूर्वी तटीय क्षेत्र
इसके अंतर्गत कृष्णा-गोदावरी डेल्टा प्रमुख क्षेत्र है।
- कावेरी तेल क्षेत्र
यहां नरीमनम तथा कोविल्ल-पल मे तेल के कुएं पाये जाते हैं।
तांबा
- यह एक महत्वपूर्ण धात्विक खनिज है जिसका उपयोग बिजली के तार, मशीन, रेडियों टेलीफोन, मिश्रधातु आदि बनाने मे किया जाता है।
- देश में तांबे की प्राप्ति अग्नेय, अवसादी एवं कायांतरित तीनों प्रकार की चट्टानों में होती है।
मैग्नीज
- इसके प्रमुख अयस्क, साइलोमैलीन एवं ब्रोमाइट है। कोल रंग का यह खनिज प्राय: प्राकृतिक भस्म के रूप में धारवाड़ युग की अवसादी चट्टानों में पाया जाता है।
- भारत में मुख्य रूप से इसका प्रयोग जंगरोधी इस्पात बनाने, लौह और मैग्नीज की मिश्रधातु बनाने, शुष्क बैटरी, रंग एवं कांच उद्योग आदि में किया जाता है।
बॉक्साइट
- यह एल्युमिनियम का अयस्क है।
- एल्युमीनियम बनाने के अतिरिक्त बॉक्साइड का प्रयोग चमड़ा रंगने,, पेट्रोल व डीजल साफ करने एवं वायुयान निर्माण उद्योग में किया जाता है।
- उड़ीसा का कालाहांडी, कोरापुट, गंधमर्दन, भारत के प्रमुख बॉक्साइट उत्पादक क्षेत्रा है।
अभ्रक (माइका)
यह एक पारदर्शी, लचीला एवं विद्युत का कुचालक खनिज है जो आग्नेय एवं कायांतरित चट्टानों में पाया जाता है।
सोना
- यह एक बहुमूल्य धातु है जो प्रकृति से कभी भी शुद्ध रूप में प्राप्त नहीं होता है।
- प्राय: देश का कुछ सोना नदियों की बालू में भी पाया जाता है। इन्हें ‘‘प्लेसर निक्षेप’’ कहते हैं। प्रमुख क्षेत्र- कोलार एंव हट्टी (98% सोना उत्पादन), रामगिरी (आंध्रप्रदेश), स्वर्णरेखा नदी स्वर्ण क्षेत्र (झारखंड), सिंधु एवं सोन नदी के प्लेसर भंडार हैं।
हीरा
- हीरा प्रकृति का सबसे कठोर तत्व एवं कार्बन का सबसे शुद्ध रूप है।
- प्राचीनकाल से ही भारत हीरे के लिए विश्व प्रसिद्ध रहा है। गोलकुण्डा की खानों से निकाला गया कोहिनूर हीरा सदियों तक आकर्षण का केन्द्र रहा।
- हीरा उत्पादन की दृष्टि से मध्यप्रदेश का भारत में महत्वपूर्ण स्थान है।
जिप्सम
- अमोनियम सल्फेट नामक रासायनिक उर्वरक है जिसका उपयोग मुख्यत: सीमेंट उद्योग में होता है।
- यह एक अधात्विक खनिज है। जिसकी प्राप्ति शुष्क क्षेत्रों में अवसादी चट्टानों से होती है।
- भारत का 90% जिप्सम राजस्थान से प्राप्त होता है।
सीसा
- यह मुख्यत: गैलेना नामक अयस्क से प्राप्त होता है। विद्युत का कुचालक होने के कारण इसका प्रयोग विभिन्न उद्योगों में किया जाता है।
- सीसा एवं जस्ता प्राय: साथ-साथ पाये जाते हैं। इन्हें जुड़वा खनिज कहते हैं।
- राजस्थान की प्रजवार खान सीसा उत्पादन हेतु विश्व प्रसिद्ध है।
ग्रेफाइट
- इसे काला सीसा एवं प्लम्बगो के नाम से भी जाना जाता है।
- इसका उपयोग मुख्यत: पेंसिल की लीड बनाने एवं परमाणु रियेक्टरों में मंदक के रूप में होता है।
- उड़ीसा केरल, बिहार, राजस्थान ग्रेफाइट के प्रमुख उत्पादक क्षेत्र हैं।
टंगस्टन
यह मुख्यत: बुलफ्राम नामक अयस्क से प्राप्त होता है। इसका उपयोग इस्पात को काटने, बिजली के बल्ब का फिलामेंट बनाने, रेडियो टेलिविजन आदि उपकरणों में किया जाता है। राजस्थान की डिगाना खान एवं मध्यप्रदेश के होशंगाबाद जिले का आगरगांव टंगस्टन उत्पादन के लिए प्रसिद्ध है।
एस्बेस्टस
- यह एक सफेद अग्निरोधी खनिज है, जिसका उपयोग अग्निरोधी वस्त्र बनाने, सेनेटरी पाइप व सीमेंट की चादर बनाने में किया जाता है।
- आंध्र प्रदेश एस्बेस्टस का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य है तथा तेलंगाना व राजस्थान मे भी एस्बेस्टस पाया जाता है।
यूरेनियम
- यह एक परमाणु खनिज है जो यूरेनाइट, पिचब्लैंड एवं समरस्काइट नामक अयस्क से प्राप्त होता है।
- इसे ‘मेटल ऑफ होप’ भी कहा जाता है।
- झारखंड के सिंहभूमि जिले की जादूगोडा खाने यूरेनियम हेतु प्रसिद्ध है।
थोरियम
- यह एक परमाणु खनिज है जिसके अयस्क थोरियोनाइट, एलेनाइट एवं मोनोजाइट है।
- भारत थोरियम का सबसे बड़ा उत्पादक देश है। यह केरल की तटीय रेत में बड़ी मात्रा में पाया जाता है।