गुप्त वंश

गुप्त वंश

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विश्लेषणात्मक अवधारणा

 

                विश्व के महान इतिहासकारों ने गुप्त काल को प्राचीन भारत का "क्लासिक युग" या "स्वर्ण काल" कहा है। वास्तव में गुप्त काल में साहित्य, वास्तुकला व ललित कलायें उस उत्कृष्टतम स्तर पर पहुंच चुकी थी, कि वो आगे आने वाले युगों के लिए एक आदर्श बन गयी। इस कालखंड में आर्यभट्ट और वराहमिहिर द्वारा ज्योतिष के सिद्धांत रचे गए। कालिदास ने संस्कृत में उत्कृष्टतम नाटकों की रचना करके संस्कृत भाषा साहित्य को उन्नत किया। विश्व के सर्वाधिक प्राचीन लिखित साक्ष्यों में शुमार होने वाले, पुराणों का संकलन इसी काल खंड की महत्वपूर्ण उपलब्धि थी। उल्लेखनीय है की वराहमिहिर, कालिदास और धन्वन्तरी (प्रख्यात प्राचीन, भारतीय चिकित्सक) सम्राट चन्द्रगुप्त द्वितीय के दरबार में नौ-रत्नों में से एक थे। चीनी यात्री फाह्यान ने इसी कालखंड में भारत की यात्रा की थी, तथा अपनी यात्रा से सम्बंधित बहुमूल्य दस्तावेजों को संकलित किया था, जिसे आज भी प्राचीन भारत का इतिहास लिखने के लिए एक महत्वपूर्ण स्रोत एवं साक्ष्य के रूप में इस्तेमाल किया जाता है।

                गुप्त काल अपने उत्कर्ष काल में उत्तर में हिमालय से दक्षिण में विन्ध्यपर्वत तक तथा पूर्व में बंगाल की खाड़ी से लेकर पश्चिम में सौराष्ट्र तक फैला था। पाटलिपुत्र इस विशाल साम्राज्य की राजधानी थी। गुप्त साम्राज्य की शासन-व्यवस्था राजतंत्रात्मक थी। मौर्य शासकों के विपरीत गुप्तवंशी शासक अपनी दैवी उत्पत्ति में विश्वास करते थे तथा महाराजाधिराज, परमभट्टारक, एकराट्, परमेश्वर, जैसी उपाधियां धारण करते थे। समुद्रगुप्त को पृथ्वी पर निवास करने वाला देवता कहा गया। परंतु अपनी दैवी उत्पत्ति के बावजूद वह स्वय विधि-नियमों का उल्लंघन नहीं कर सकता था।

 

                       

गुप्त साम्राज्य की नींव रखने वाला शासक श्रीगुप्त था। श्री गुप्त ने ही 240 ई. में गुप्त वंश की स्थापना की थी। मौर्य काल के बाद गुप्त काल को भी भारतीय इतिहास का स्वर्णिम युग माना गया है। गुप्त वंश की जानकारी वायुपुराण से प्राप्त होती है। गुप्तकाल की राजकीय भाषा संस्कृत थी। ये भी माना जाता है कि दशमलव प्रणाली की शुरुआत भी गुप्तकाल में ही हुई थी और मंदिरों का वास्तविक निर्माण कार्य भी गुप्तकाल में ही शुरू हुआ था।

 

गुप्तवंश के शासक

  • श्रीगुप्त (240-280 ई.) श्रीगुप्त गुप्तवंश का प्रथम शासक और गुप्त वंश की स्थापना करने वाला शासक था। इसने महाराज की उपाधि धारण की।
  • पूना से प्राप्त ताम्रपत्र में श्रीगुप्त को 'आदिराज' नाम से सम्बोधित किया गया है।

 

घटोत्कच गुप्त (280-319 ई.)

  • श्रीगुप्त के बाद उसका पुत्र घटोत्कच गुप्त सिंहासन पर आसीन हुआ।
  • इसने भी महाराज की उपाधि धारण की।

 

चन्द्रगुप्त प्रथम (319-335 ई.)

  • चन्द्रगुप्त घटोत्कच गुप्त का पुत्र था, जिसने घटोत्कच गुप्त के बाद सत्ता की बागडोर संभाली।
  • चन्द्रगुप्त को महाराजाधिराज चन्द्रगुप्त के नाम से भी जाना जाता है।
  • गुप्त वंश (319-20 ई.) का प्रथम महान सम्राट चन्द्रगुप्त प्रथम को ही माना जाता है।
  • गुप्त संवत शुरू करने का श्रेय चन्द्रगुप्त प्रथम को ही दिया जाता है।
  • गुप्त काल में सर्वप्रथम सिक्कों का चलन भी चन्द्रगुप्त प्रथम ने ही किया था।

समुद्रगुप्त (335-375 ई.)

  • चन्द्रगुप्त के पश्चात् 335 ई. के आस-पास उसका पुत्र समुद्रगुप्त सिंहासन पर बैठा।
  • समुद्रगुप्त ने एक विशाल साम्राज्य का निर्माण किया था जो कि पूर्व में बंगाल की खाड़ी से लेकर पश्चिम में स्थित पूर्वी मालवा तक तथा उत्तर में हिमालय से लेकर दक्षिण में विध्य पर्वत तक फैला हुआ था। इलाहबाद शिलालेख के अनुसार समुद्रगुप्त एक महान कवि और संगीतकार था। समुद्रगुप्त को उसकी राज्य प्रसार नीतियों के कारण विसेंट स्मिथ मे 'भारत का नेपोलियन' भी कहा गया है।
  • इसके बाद संभवतः रामगुप्त ने शासन किया।

                                       

 

चन्द्रगुप्त द्वितीय (375-414 ई.) -

  • गुप्त राजवंश का अगला शासक चन्द्रगुप्त द्वितीय था, जो समुद्रगुप्त का पुत्र था। जिसे विक्रमादित्य और देवगुप्त के नाम से भी जाना गया।
  • इसे 'शक-विजेता' के नाम से भी पुकारा जाता है।
  • चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य ने लगभग 40 वर्षों तक राज किया।
  • विक्रमादित्य के शासन काल को भारतीय कला व साहित्य का स्वर्णिम युग कहा जाता है।
  • चन्द्रगुप्त द्वितीय का विशाल साम्राज्य उत्तर में हिमालय के तलहटी इलाकों से लेकर दक्षिण में नर्मदा नदी के तटों तक तथा पूर्व में बंगाल से लेकर पश्चिम में गुजरात तक फैला हुआ था।

 

  • चन्द्रगुप्त द्वितीय की प्रथम राजधानी पाटलिपुत्र थी और द्वितीय राजधानी उज्जयिनी (उज्जैन) थी।

 

प्रसिद्ध कवि कालिदास चन्द्रगुप्त द्वितीय का दरबारी था, जिसे दरबार में सम्मिलित नौरत्नों में प्रधान माना जाता था। जिनमें प्रसिद्ध चिकित्सक धन्वंतरि भी शामिल थे। अन्य सात रत्न अमर सिंह, शंकु, क्षपणक (ज्योतिष), बेताल भट, वराहमिहिर, घटकपर और वररुचि थे।

 

  • चीनी यात्री फह्यान या फाहियान चन्द्रगुप्त द्वितीय के शासन काल में ही भारत आया था। रजत (चांदी) के सिक्के शुरू करने वाला प्रथम शासक चन्द्रगुप्त द्वितीय था, जिन्हें रूपक या रप्यक कहा जाता था।
  • महरौली स्थित राजचन्द्र के लौहस्तम्भ को चन्द्रगुप्त द्वितीय न बनवाया था।

 

कुमारगुप्त प्रथम (415 - 454 ई.)

  • चन्द्रगुप्त द्वितीय की मृत्यु के पश्चात् उसका पुत्र कुमारगुप्त प्रथम सिंहासन पर आसीन हुआ।
  • कुमारगुप्त प्रथम ने अश्वमेध यज्ञ करवाया था और महेन्द्रादित्य की उपाधि धारण की थी।
  • कुमारगुप्त प्रथम के ही शासन काल में नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना की थी।
  • कुमारगुप्त प्रथम ने अपने पिता चन्द्रगुप्त द्वितीय की ही भांति राज्य को सुव्यवस्था और सुशासन से चलाया था।

 

स्कंदगुप्त (455-467 ई.)

  • कुमारगुप्त की मृत्यु के पश्चात् उसका उत्तराधिकारी पुत्र स्कंदगुप्त राजसिहांसन पर विराजमान हुआ। उसे काफी लोक हितकारी सम्राट माना गया है।
  • स्कंदगुप्त ने हूणों के आक्रमण से भी देश को बचाया था।
  • स्कंदगुप्त के पश्चात् कोई भी गुप्तवंश का राजा अपना प्रभुत्व इतना न बढ़ा सका जिसकी जानकारी इतिहास के पन्नों में दर्ज हो। जिस कारण स्कंदगुप्त के उत्तराधिकारियों की स्पष्ट जानकारी उपलब्ध नहीं है।
  • गुप्त वंश का अंतिम शासक विष्णुगुप्त था।
  • गुप्त वंश के पतन का कारण
  • गुप्तवंश के पतन का कारण पारिवारिक कलह और बार-बार होने वाले विदेशी आक्रमण माने जाते हैं। जिनमें हूणों द्वारा आक्रमण को मुख्य कारण माना जाता है।

 


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